Tuesday, February 10, 2009

सच

छीनने के लिये पैसा, लूटने के लिये मकान।

नारों के लिये ईश्वर, और नेता दोनों ही सहज उपलब्ध।

मकान लूट लू या नारा लगाऊं, मैं क्या करूं,

हत्याओं के लिये आदमी, झपटने के लिये कार

हटाने के लिये नैतिक बोध , मिटाने के लिये नक्शे

तब मैं क्या करूं

बलात्कार करने के लिये लड़कियां, ठगने के लिये स्त्रियां

छलने के बुढियाएं सारी

मैं क्या करूं

। जलाने के लिये बस्तियां , लूटने के लिये बाजार।

इन सबसे भी बड़ा है व्यापार।

मैं क्या करूं