न कहूं तो खुद से,
कहूं तो तुझ से डर लगता है।
मोम के लोग,
राख की जन्नत है
उगे न सूरज उगे,
चले न हवा
इस दौर ए शहंशाह की मन्नत है।
.........................................
खुद से खडा हुआं तो तन्हा हूं
झुकता था तो लोग आवाजें देते थे मुझे
नजर नीची रखीं तो बाअदब था
नजरें उठीं तो बेअदब जमाने ने कहा मुझे।
......................................
दर्द दो , मुस्कुरा दो..
ये हुनर मुझको न सिखा
जब्त है मुझमें बहुत
तू बस अपना जलवा दिखा।
...........................
मुझे रह-रह कर तेरी रहबरी पर शक होता है
तू जिसे मंजिल कहता है मुझे मौत का घर दिखायी देता है
.....................................
तू चाहता है कि गिर कर खुदा से मांगूं तूझे
मेरी फितरत है कि गिर कर खुदा भी नहीं चाहिये मुझे
Sunday, May 23, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment