आंखों में कुछ जुबां से कुछ
दिल में जो वो कहता क्यूं नहीं
टूट-टूट कर बिखर रहा है अंदर
आंखों से बहता क्यूं नहीं
सफऱ दर सफर घूमता दर दर
जिसे मंजिल कहता है उन आंखों में रहता क्यूं नहीं
आंखों का फरेब है जितना दिलकश
जुबां का सच उतना दिलफरेब क्यूं नहीं
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राख है अभी, कुछ देर में बिखर जायेगी
एक जले हुए ख्वाब की तुमको याद तो आयेगी
देखा, रूकी, मुस्कुराई ,चली जायेगी
जिंदगी कहां देर तलक किसी को मनायेंगी
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टूटी हुई ही सही आस रहनी रहनी चाहिये
भरे गले में भी एक प्यास रहनी चाहिये।
Saturday, June 19, 2010
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