इसी जनम में मुझे जीना था
सच
कई जनमों का,
इसी जनम में मुझे
बोलना सुनना था
झूठ
सातों दुनिया का,
बनाने थे रिश्ते सात जनमों के
भोगने थे
पाप
कितने जनमों के
कमाना था
पुण्य
अगले जनमों का
इतना ही नहीं
जान लेना था
इस दुनिया को
भूल जाना था पुरानी दुनिया को
मेरे पास एक जनम था
उम्मीद थीं कई जनमों की
मुझे दोहराना था
शैतान से
हजारों जनमों की लड़ाई को
मुझे गाना था
अजनमा
ईश्वर की असीम बड़ाई को,
मेरे पास एक जनम था
चुनना था कई जनमों को
फिर
मैंने तुम को चुन लिया
बाकी
सब
छोड़ दिया
मैंने
अगले जनमों के लिये।
Friday, June 25, 2010
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2 comments:
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति।
ओह...जन्मजन्मांतर की कहानी....सोचने पर मजबूर करती हुई
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