Wednesday, April 11, 2007
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अक्सर ये सवाल उठता हैं कि मीडिया खुद जनतंत्र का फल हैं तो इसमें कैसी तानाशाही होगी। लेकिन वक्त ने जैसे सब कुछ बदलने का ही ठान लिया हैं। जब वक्त के साथ तहजीब बदली तो तौर तरीके भी बदल गये। इस बदलाव का शिकार हुआ मीडिया। दूसरों की आजादी की पैरवी करने वाले मीडिया में आंतरिक जनतंत्र अब बेहद तनाव से गुजर रहा हैं इसी के लिये जरूरी हैं, हम सब अपने विचार मिल-जुल कर बांटे। क्योंकि दुनिया को बताने से पहले हम लोग खुद के बारे में जान ले।