Thursday, January 7, 2010

आओं अपनी बहुएं जलाये,मीडिया से दहेज विरोधी कानून बदलवाये

सर मेरी बहन को जिंदा जला दिया। पुलिस ने केस दर्ज नहीं किया। कह रही है पहले जांच करेंगे।
लेकिन हम ये खबर नहीं कर सकते।
क्यों सर क्यों कवर नहीं कर सकते।
क्योंकि हमारे चैनल में दहेज हत्या की खबरें अब कवर नहीं होती। उनमें दहेज विरोधी कानूनों का कई बार बेजा इस्तेमाल होता है।
जीं हां ये आम जवाब है जो पिछले तीन-चार सालों में दहेज की बलि पर जिंदा जला दी गयी लड़कियों के भाईयों-पिताओं या फिर रिश्तेदारों को देश के मीडिया चैनल्स के रिपोर्टर ने दिया। आपको अपने दिमाग पर जोर देने की जरूरत है ताकि आप ये याद कर सके कि विज्यूअल मीडियम पर आपने आखिरी बार दहेज के लिये जलाई गयी लड़की की खबर कब देखी थी। कब देखा था कि ससुराल की दरिंदगी ने एक मासूम की जान ली। आप को ये भी याद नहीं होगा कि देश के तथाकथित नेशनल अखबारों की सुर्खियों में आखिरी बार दहेज हत्या की खबर कब आयी थी।
लेकिन आपको ये जरूर याद होगा कि टीवी चैनलों में दयनीय दिखते कुछ लडके वाले बता रहे है कि उनकी मां-बहन को भी दहेज हत्या में लपेट लिया गया। उनके खिलाफ रिपोर्ट लिखा दी गयी। पुलिस उन्हें बेजा परेशान कर रही है। और अखबारों ने तो इस बात की मुहिम ही छेड दी है कि दहेज कानूनों नें बदलाव लाया जाये। देश में इन कानूनों का गलत इस्तेमाल हो रहा है। जीं हां देश में दहेज हत्या पर बात करना फैशन से बाहर हो गया। सबको लगने लगा कि हां यार लडकी वाले अपनी लड़की की बदचलनी छिपाने के लिये दहेज मांगने का आरोप लगा देते है।
दरअसल इस देश को झूठ में रहने की आदत है। इसी लिये किसी रिपोर्टर ने इस बात को कवर करने की जरूरत महसूस नहीं की कि वो चैक करे कि हाल में रिलीज हुए दहेज हत्या के आंकड़ों में कमी नहीं बल्कि बढ़ोत्तरी का ही ट्रैंड दिखायी दे रहा है। और ये सरकारी आंकडें है जो ये साबित करते है कि दहेज के लिये इस देश में हर साल हजारों की तादाद में महिलाओं की बलि चढा़यी जा रही है।
ये वो मामले है जिनकी रिपोर्ट पुलिस ने दर्ज करने में मेहरबानी की है। इससे बड़ी तादाद है उन मामलों की जिन में लड़की वालों की रिपोर्ट दर्ज ही नहीं की गयी। और उससे भी बड़ी तादाद है उनकी जिनकी मौत को चांदी के जूते के दम पर ससुराल वालों ने आत्महत्या में तब्दील करा दिया। ऐसे मामले भी कम नहीं जिनकों पंचायतों में निबटा दिया गया। जिनके लिये पैसे देकर समझौता करा दिया गया।
ये देश दुनिया की ताकत कहलाने का बड़ा शौकीन है। हर बात में अमेरिका के जूते चांटने के लिये तत्पर। अमेरिका के बाप को अपना बाप बताने की कोशिश में जुटे लोगों का देश। लेकिन हजारों की तादाद में जलाई जा रही लडकियों के लिये कोई रहम नहीं कोई संवेदना नहीं। चांद पर यान उतारना है। आस्कर जीतना है दुश्मन देश की मिसाईल नष्ट करनी है सेटेलाईट दूर से जला देने है। इतनी तरक्की के बाद भी जिन लोगों को याद है कि लड़कियां जिंदा जलाई जाती वो वाहियात लोग है। देश के गद्दार है। एक रिपोर्टर होते है नासीरुद्दीन साहब तीन या शायद चार साल पहले उन्होंने बांदा में आत्महत्या करने वाली औरतों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर एक खबर की थी। और उसमें ये पता चला था कि मरने वाली औरते के जबड़े तक टूटे हुये थे उनके शरीर पर चोट के निशान थे। लेकिन मौत का कारण आत्महत्या थी। दो साल में ऐसे मामलों की तादाद सैकड़ो में थी।
अब ऐसे में दहेज विरोधी कानून को बदलने की दलील देने वालों लोगों से मेरा एक निवेदन है कि दर्द महसूस करना है तो कम से कम अपनी एक उंगुली ही आग में थोड़ी देर झुलसा कर देख ले।
मुझे याद आ रही है मंजर साहब की दो पक्तियां। पता नहीं सही से लिख पा रहा हूं कि नहीं क्योंकि ये भी उस वक्त कि है जब मैं आठ साल का लड़का होता था और किसी भी लड़की के जलने पर घर की औरतों और अपने पिताजी को बात करते हुये देखता था।
जिन्हें शौक है बहुएं जलाने का
वो पहले अपने घर में बेटियां जला ले।

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