Sunday, May 1, 2011

शाही चुंबन के इंतजार में लाखों दीवाने

एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल के दफ्तर की लिफ्ट से उतर रहा था। लिफ्ट में एक बेहद जानी पहचानी सूरत भी थी जिसका नाम याद नहीं आ रहा था। लिफ्ट सफर में अलग-अलग मंजिल पर रूक रही थी। चेहरे डसे पहचानी सी उस महिला के साथ दूसरी महिला ने कहा कि ये दोनो किस पैतालिस सेकेंड के तो होंगे। अचानक याद आया कि ये तो देश की मशहूर लेखिका शोभा डे है। मेरी समझ में अंग्रेजी कम ही आती है लेकिन उस अंग्रेजी में ये भी ये महिला अपनी लेखनी कम उट-पटांग हरकतों और बेकार से वक्तव्यों के कारण ज्यादा जानी जाती है। शोभा डे का जवाब था कि नहीं किस पैतालीस सेकेंड का नहीं था दोनों चुंबन कुल मिलाकर लगभग पैतीस सेकंड के होंगे। और इस के बाद वो लिफ्ट के उस सफर में उन चुंबनों की मीमांसा करती रही। बाद में मालूम हुआ कि चैनल में हुए डिस्कशन में शामिल हो कर लौटी थी दोनो महिलाएं जो डिस्कशन दुनिया में सबसे बड़ी शादी के जश्न में भारत के न्यूज चैनल कर रहे थे।
देश के बे लगाम और छुट्टे सांड की तरह से चल रहे इन न्यूज चैनलों के महान गणितज्ञों की सूचना है कि इस शादी को लगभग दो अरब लोगों ने देखा हैं। पूरी दुनिया की आबादी छह अरब के आस-पास है। इस आबादी में औरते, बच्चे भी शामिल है। हिंदुस्तानी न्यू नक्शें में तो अफ्रीका और एशिया के वो देश भी आते है जहां गरीबी और भूखमरी का साम्राज्य फैला हुआ है। ये अलग बात है कि इस के पीछे सबसे ज्यादा हाथ इंग्लैंड का ही है जिसकी तारीफों के पुल बांधते-बांधते हिंदुस्तानी मीडिया के नौनिहाल थक नहीं रहे है। खूबसूरत ऐंकर कम रिपोर्टर भाव विभोर हो रही है। गोरों के देश में ज्यादातर टीवी चैनलों ने जिन लोगों को भेजा होंगा उनका रंग भी कम से कम इतना गोरा तो होंगा ही कि वो बाकि हिंदुस्तानियों से अलग नजर आएं और बेहतर था कि वो लड़की हो तो फिर इस शादी की कवरेज में टीआरपी की लूट हो जाएं।
मैंने रात को देखा कि न्यूज चैनल्स पर गोरी चिट्ठी एंकर अपने आपको लुभावने लगने वाले लेकिन घटिया से अंदाज में इन दोनों चुंबनों पर चर्चा में जुटी थी। पूरी दुनिया में विकसित देशों में अलग-अलग विषयों पर चर्चाओं का फैशन रहा है क्योंकि ये देश सालों पहले गरीबी और भूख की महामारी से बाहर आ चुके है, लेकिन उन देशों में जहां भूख और कुपोषण आज भी समस्या है वहां चुंबनों पर चर्चा कितनों लोगों में उत्तेजना जगाएंगी ये वाकई दिलचस्प होगा। हो सकता है इस बारे में लंबी बहस हो जाएं कि आखिर दुनिया का इतना बड़ा आयोजन है इसकी रिपोर्टिंग देश के दर्शक जरूर देखना चाहेंगे। लेकिन हमेशा की तरह एक बात जेहन में घूमती है कि कौन से दर्शक है जो इसको देखना चाहते है और देश की खबरों को नहीं। बाबा, अघोरी, तांत्रिक, हंसी, सास बहू और ,,,इसके अलावा बंदर भालू दिखाने वाले चैनल अपने आपको जनता का पहरूआ जब समझते है तो हैरानी होती है। इस शादी की चर्चा अगले दिन के सभी तथाकथित नेशनल न्यूज पेपर्स में भी पहले पेज पर थी। और कोई हैरानी नहीं थी कि शाही चुंबन का फोटो हर अखबार का बिकाऊ माल था। देश के एक तिहाई जिलों में भूख से तड़पते लोग है। बीमारियों से मरते लोग है, राशन और पीने के पानी के लिए भागते और इधर-उधर दौड़ते लोग अब चैनल्स के लिए बिकाऊं विज्यूअल्स नहीं रहे। वो दौर चला गया जब एनडीटीवी इस तरह के विज्यूअल्स दिखा कर टीआरपी बटोरा करता था। आज टीवी में एक दो पत्रकार इसको अपना ब्रांड बनाकर बेचते रहते है लेकिन उनको देखता कोई नहीं है हां तारीफ सब करते है।
देश में चुंबनों पर इतना वक्त जाया करने वाले पत्रकारों को इस बात की याद कितनी है नहीं जानता कि सरकार में अभी भी इस बात की लड़ाई चल रही है कि देश में गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की जनसंख्या को आंकने का फार्मूला क्या हो ताकि उनके नाम पर वोट भी मिलते रहे और उनके नाम पर आऩे वाली राहत राशि को डकारते भी रहे। आखिर कभी ये सवाल क्यों कोई टीवी चैनल नहीं पूछता कि जाम के वक्त गायब रहने वाले कांस्टेबल की तनख्वाह किस पैसे से आती है। यदि वो जाम के वक्त ही गायब है तो उसकी नौकरी की जरूरत ही क्या। शहर में जगह-जगह गर्मी में गर्मी में और सर्दी में सर्दी से दम तोड़ते इंसानों के आधार पर समाज कल्याण विभाग के अफसरों की संपत्ति जब्त क्यों नहीं होती। कभी इस बात पर भी चर्चा हो कि रोड एक्सीडेंट में हर साल अस्सी हजार से ज्यादा दम तोड़ने वाले लोगों के मामले में किसी को भी उम्रकैंद क्यों नहीं होती और तो और इंसान को मारने वाले ड्राईवर को जमानत सिर्फ थाने से ही क्यों मिल जाती है।
बात तो आप चुंबन की कर रहे है फिर इस में गुलामों के हालात पर तरस खाना विधवा विलाप सा ही है। चलिएं यूं ही सही एक बार आप को फिर से शाही चुंबन याद तो रहा।

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