"देश के लिये आज का दिन सौभाग्य का दिन है, देश को एक बेहद ईमानदार और पढ़ा लिखा प्रधानमंत्री मिला है" कॉफी हाउस में बैठते हुए एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने मुझसे कहा था। देश की कमोबेश यही हालत थी। वर्ल्ड बैंक के लिये नौकरी कर चुके प्रधानमंत्री की ईमानदारी और अर्थशास्त्र की समझ पर कांग्रेसियों और बाकी पूरे देश को ऐतबार दिख रहा था।
वर्ल्ड बैंक की नौकरी यानि अमेरिकी और ताकतवर अमीर देशों के इशारों पर काम करने वाला बैंक। मैंने बस इतना सा ही जवाब दिया था। उन लोगों का मजा किरकिरा नहीं करना चाहता था। पत्रकार होने के नाते मेरे जेहन में ऐसे सवाल जरूर चुभ रहे थे। मैं चाहता तो भी मेरे दोस्त उनका जवाब नहीं दे पातें। हालांकि मैंने चलते-चलते पूछ लिया कि ये प्रधानमंत्री हिंदी में अच्छा बोलतें है कि पंजाबी में। जवाब में अटकते कांग्रेसी दोस्तों ने कहा कि नहीं वो इन दोनों भाषाओं में नहीं बल्कि अंग्रेजी में बहुत शानदार बोलते है। मुझे लगा कि देश के लिये ये प्रधानमंत्री कितने मुफीद होंगे साफ नहीं था लेकिन एक बात थी कि ये जनाब अर्थशास्त्र के भारी विद्धान है
बात आई-गई हो गयी। वो कांग्रेसी दोस्त भी मेरे साथ है। कभी-कभी मिलते है। देश के सामने भी प्रधानमंत्री का काम-काज है। चौबीस मई को छह साल के अपने कार्यकाल में प्रधानमंत्री ने दूसरी बार प्रेस कांफ्रेस की। यानि देश से दूसरी बार प्रधानमंत्री मुखातिब हुए। उनकी पहली बात थी कि देश तरक्की कर रहा है। पूरी प्रेस कांफ्रेस के फूटेज को बार-बार देखता हूं, उसको पढ़ता हूं एक बात समझ में आती है कि ये वर्ल्ड बैंक के अर्थशास्त्री है किसी गरीब जनता के प्रतिनिधि नहीं। गरीब देश की अमीर संसद के प्रधानमंत्री। तीन सौ से ज्यादा करोड़पति सांसद है इस बार की कुल पांच सौ पैतालिस की संसद में। ये कैसा अर्थशास्त्र है कि गरीब आदमी रोटी के लिये तड़प रहा है। गरीब आदमी आम आदमी नहीं है इस देश में। आम आदमी देश के मध्यमवर्ग को कहा जाता है। वो वर्ग भी मंहगाई से बिलबिला रहा है। देश की 38 फीसदी जनता को एक वक्त का खाना नहीं मिल रहा है। बच्चे मिट्टी की रोटियां खा रहे है। परिवार आत्महत्या कर रहे है। कुपोषण का कोई आंकड़ा नहीं। लेकिन प्रधानमंत्री का चेहरा खुशी से दमक रहा था और उनके मुंह से देश को पता चल रहा था कि बढ़ती विकास दर से मंहगाईं बढ़ रही है। मुझे सिर्फ एक हिंदुस्तानी अर्थशास्त्री की बात याद आ रही थी कि वर्ल्ड बैंक गरीब आदमी के निवाले से अमीरों की थाली सजाता है।
ये सोचा जा सकता है कि गरीबी पर नियंत्रण तो प्रधानमंत्री के हाथ से बाहर की बात है। लेकिन मंत्रीमंडल में मक्कारों की फौज पर प्रधानमंत्री का कोई बस है कि नहीं। उनको कोई घोटाला समझ आता है कि नहीं। टेलीकॉम घोटाला 60,000 करोड़ रूपये की देश के साथ लूट। एक के बाद एक घोटाले लेकिन प्रधानमंत्री का कहना है कि जांच होंगी। लेकिन जांच किस बात की होंगी..सबूतों से तो साफ दिख रहा है कि इसमें देश के साथ लूट हुई लेकिन ये अर्थशास्त्री समझ नहीं पा रहे है।
शरद पवार का कुनबा लूट की छूट के साथ ही मंत्रीमंडल में शामिल हुआ। संसद के गलियारे में शरद पवार की सांसद बेटी देश के सामने सफेद झूठ बोलती है कि उसके परिवार का कोई लेना-देना इंडियन पैसा लूटो लीग से नहीं है माफ करना इंडियन प्रीमियर लीग मैं चाह कर भी नहीं कह पाता हूं।
पहले पता चलता है कि सुप्रिया सुले के पति के उस कंपनी में शामिल है जिसको प्रसारण अधिकार के हजारों करो़ड़ के ठेके मिले है। खुदा खैर करे ...लेकिन अब सामने आया कि पुणे टीम की खरीद में शामिल सिटी कॉर्प के पीछे शरद पवार का परिवार है। खुद शरद पवार उनकी पत्नी और बेटी की इस कंपनी में 16 फीसदी हिस्सेदारी है। कंपनी ने पुणे की टीम खरीदने की 1100 करोड़ की बोली लगाई थी। कोई बेवकूफ भी बता सकता है कि कैसे ये खेल हुआ होंगा। लूट में जुटे इस परिवार के करीबी और इंटेलीजेंट और ओनेस्ट प्रधानमंत्री के एक और मंत्री प्रफुल्ल पटेल की बेटी ललित मोदी के लिये काम कर रही है।
दाल घोटाले में हजारों करोड़ रूपये का खेल कैसे हुआ। चीनी घोटाला क्या है। लोग भूल जाते हैं। इस भूल की कीमत बैठती है पवार कुनबे के दम पर जम कर देश को लूट रहे बिजनेस समूहों के लिये हजारों करोड़ रूपये की छप्परफाड़ कमाईं। देश के सामने शरदपवार झूठ बोलते है कि चीनी का उत्पादन कम होने की उम्मीद है मंहगाईं बढ़ती है 14 रूपये किलो चीनी 50 रूपये किलो तक जाती है। और देश में चीनी का उत्पादन ज्यादा हो जाता है। कैसे... ज्योतिषी जानता है प्रधानमंत्री नहीं।
हैरानी और भी है। लेकिन किसी को मालूम नहीं कि प्रधानमंत्री देश से बात करते हुए किस बात पर ज्यादा खुश है कि छह साल तक गद्दी पर बैठे रहे या देश के युवराज की अभी गद्दी संभालने की इच्छा नहीं है।
लेकिन एक बात और देश के प्रधानमंत्री की सभा में मीडिया की दरियादिली देखिये कि पूछता है कि आप किसकी ज्यादा सुनते है अपनी पत्नी की या अपनी पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी की। मुस्कुराते प्रधानमंत्री और अपने सवाल पर इतराता मीडिया गजब की नूरा कुश्ती है।
लेकिन सवाल है अर्थशास्त्री जी देश के गरीब आदमी को कितनी रोटी खानी चाहिये और आम आदमी के एक दिन की थाली का मैन्यू क्या हो।
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Monday, June 7, 2010
Tuesday, January 12, 2010
क्रिकेट मंत्री कृषि से खेल मत कर
शरद पवार के बारे में अगर देश में किसी भी आम आदमी से जानकारी लेंगें तो पता चलेगा कि वो देश के अरबपति राजनतेा है। वो क्रिकेट मंत्री है। खेल से खेल करते है। लेकिन उऩके बारे में एक जानकारी और है वो देश के कृषि मंत्री है। कृषि से खेल करते है। आप उन्हें दिल्ली में कभी-कभी किसानों की समस्याओं पर बोलते सुन सकते है। एक खास बात है कि वो जब-जब बोलते है हजारों व्यापारियों की तिजोरियों में अरबों रूपये भर जाते है औऱ आम आदमी की जेब पर महंगाई की मार पड़ जाती है। शरद पवार को आप मुंबई में समारोह में आते-जाते देख सकते है। लेकिन देश के सबसे बड़े कृषि राज्यों के किसानों के लिये वो सिर्फ टीवी पर नजर आते है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, और मध्यप्रदेश के किसानों पिछली सरकार के पांच साल के कार्यकाल में सिर्फ एक बार अपने राज्य में देखा। यहां तक की उत्तर प्रदेश जो बुंदेलखंड में अकाल के चलते बेहद चर्चाओं में रहा। वहां भी कृषि मंत्री शरद पवार एक ही बार गये है 20-21 जुलाई 2005 को लखनऊ गये थे शरद पवार।
उत्तर प्रदेश की तरह से ही मध्य प्रदेश और राजस्थान के किसानों को पांच साल में अपने कृषि मंत्री के एक एक बार ही दर्शन हुए है। कृषि मंत्री शरद पवार के मंत्रालय से हासिल जानकारी के मुताबिक शरद पवार ने पिछले पांच साल के कार्यकाल में मध्य प्रदेश का भी एक ही बार दौरा किया।
शरद पवार ने मध्य प्रदेश में 30 अप्रैल 2006 में इंदौर का दौरा किया था।
राजस्थान भी शरद पवार के निगाहों में जा चढ़ नहीं पाया और केन्द्रीय कृषि मंत्री 2004-2009 के कार्यकाल में सिर्फ एक बार 23-24 2006 फरवरी को उदयपुर कर आये थे।
शरद पवार 2006 में चार बार उत्तराखंड आये थे।
केन्द्र में दूसरी सरकार को आये भी इतने दिन हो गये। लेकिन यूपी, मध्यप्रदेश, बिहार को अभी भी मंत्री जी के दर्शन नहीं हुये है। इस दौरान गन्ना किसानों ने अपना गन्ना खेतों में जलाया।
लेकिन इस पूरे सीन में में पूरे एपिसोड़ का नायक कहां रहा। देश के कृषि मंत्री शरदपवार। जिनकी जिम्मेदारी देश में कृषि और उसके किसानों का ख्याल रखने की वो आखिर कहां हैं। कृषि मंत्री शरद पवार बयान देते है और मंहगाई बढ़ जाती है।
देश के कृषि उत्पादन में उत्तर भारत के राज्यों का कितना बड़ा हिस्सा है। इस बारे में जानने के लिये आपको किसी किताब की जरूरत नहीं होंगी। लेकिन देश के कृषि मंत्री शरद पवार की नजर में इन राज्यों में कृषि चकाचक है।
लेकिन इस दौरान कांग्रेसी सांसद राहुल गांधी ने कई बार राज्य का दौरा किया। इतना ही नहीं राहुल गांधी ने बुंदेलखंड में सूखे को लेकर कई बार ऐसे बयान भी दिये कि राज्य सरकार ने उन पर विवाद खड़ा कर दिया। लेकिन इस बारे में भी जो चीज सीन से गायब थी वो थी कृषि मंत्री शरद पवार की उपस्थिति।
उत्तर प्रदेश की तरह से ही मध्य प्रदेश और राजस्थान के किसानों को पांच साल में अपने कृषि मंत्री के एक एक बार ही दर्शन हुए है। कृषि मंत्री शरद पवार के मंत्रालय से हासिल जानकारी के मुताबिक शरद पवार ने पिछले पांच साल के कार्यकाल में मध्य प्रदेश का भी एक ही बार दौरा किया।
शरद पवार ने मध्य प्रदेश में 30 अप्रैल 2006 में इंदौर का दौरा किया था।
राजस्थान भी शरद पवार के निगाहों में जा चढ़ नहीं पाया और केन्द्रीय कृषि मंत्री 2004-2009 के कार्यकाल में सिर्फ एक बार 23-24 2006 फरवरी को उदयपुर कर आये थे।
शरद पवार 2006 में चार बार उत्तराखंड आये थे।
केन्द्र में दूसरी सरकार को आये भी इतने दिन हो गये। लेकिन यूपी, मध्यप्रदेश, बिहार को अभी भी मंत्री जी के दर्शन नहीं हुये है। इस दौरान गन्ना किसानों ने अपना गन्ना खेतों में जलाया।
लेकिन इस पूरे सीन में में पूरे एपिसोड़ का नायक कहां रहा। देश के कृषि मंत्री शरदपवार। जिनकी जिम्मेदारी देश में कृषि और उसके किसानों का ख्याल रखने की वो आखिर कहां हैं। कृषि मंत्री शरद पवार बयान देते है और मंहगाई बढ़ जाती है।
देश के कृषि उत्पादन में उत्तर भारत के राज्यों का कितना बड़ा हिस्सा है। इस बारे में जानने के लिये आपको किसी किताब की जरूरत नहीं होंगी। लेकिन देश के कृषि मंत्री शरद पवार की नजर में इन राज्यों में कृषि चकाचक है।
लेकिन इस दौरान कांग्रेसी सांसद राहुल गांधी ने कई बार राज्य का दौरा किया। इतना ही नहीं राहुल गांधी ने बुंदेलखंड में सूखे को लेकर कई बार ऐसे बयान भी दिये कि राज्य सरकार ने उन पर विवाद खड़ा कर दिया। लेकिन इस बारे में भी जो चीज सीन से गायब थी वो थी कृषि मंत्री शरद पवार की उपस्थिति।
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